मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

दिवाली पर नहीं कमाएंगे तो कब कमाएंगे?



एक दोस्त से बातचीत चल रही थी...मार्केट के मौजूदा हालात पर। चर्चा यहां पहुंची कि भई अब मार्केट के हालात सुधर रहे हैं आने वाले दिनों में अच्छे की ही उम्मीद करनी चाहिए। ख़ैर लगता तो ऐसा ही है। उदासी भरा मन बार-बार यही कह रहा था कि गांवों की ज़िंदगी में शायद सुकून है...शहरों में वो चैन कहां। सबकुछ मिलावटी.....खाने-पीने के सामान से लेकर दोस्ती का दम्भ भरने वाले संगी-साथियों का प्यार भी। थोड़ी देर तक दोस्त भी चुप और मैं भी चुप।


अचानक खयाल आया कि दीवाली का त्योहार सिर पर है...दीवाली बीत जाए तब तो सब ठीक ही हो जाएगा। फिर दोस्त बोल पड़ा। कहने लगा कि 'मेरे ऑफिस के सामने रोज़ाना एक एक्टिविटी होती थी...मैं समझ नहीं पाता था कि आखिर रोज़ ये होता क्या है। आज मैंने सोचा कि चलो जायज़ा लिया जाए कि क्या हो रहा है। दरअसल, ऑफिस के सामने बने एक छोटे से फैक्टरीनुमा निर्माण के सामने रोज़ाना ट्रकों की लोडिंग-अनलोडिंग होती दिखाई देती थी। मैंने सोचा देखूं कि किस चीज़ की फैक्टरी है। मौक़ा मिला देखने का। ट्रक आया और हमेशा की तरह माल की अनलोडिंग शुरू हुई। माल क्या था....टिन के डिब्बे(वैसे ही डिब्बे जिसमें बाजार में हमें मिलते हैं रसगुल्ले या रसमलाई)।'


फिर थोड़ी देर की चुप्पी। फिर बोला 'एक नज़र में लगा कि अंदर जाकर इन डिब्बों में खाने-पीने का आइटम(चाहे जो कुछ भी हो) भरा जाएगा। लेकिन मेरी नज़र में तो कुछ और ही आया। एक कमरे में बैठे कुछ लोग इन डिब्बों पर लगे लेबलों को हटा रहे थे...जबकि दूसरे कमरे में बैठे कुछ लोगों के हाथों में तैयार लेबल थे जो इन्हीं डिब्बों पर नए लेबल चस्पा कर रहे थे। नए लेबल लगे डिब्बों से फिर ट्रक को लोड किया जाने लगा। मन उसी वक्त कई सवालों से बोझिल हो गया। क्या करता...मैं कुछ सोचते-सोचते वहां से कट लिया। कभी सोचूं कि ये लोग कहीं एक्सपायर्ड माल तो नहीं बेच रहे? फिर लगा कि या किसी सस्ते और सड़कछाप ब्रैंड पर नामी ब्रैंड का लेबल चस्पा कर रहे हैं(मोटी कमाई के लिए)? ये सब सोचते-सोचते सिर चकराने लगा।'


मैं भी सोच में पड़ गई। वो बोला 'अंत में यही सोचकर अपने दिल को तसल्ली देने लगा कि बेचारे लोग जो भी कर रहे थे...शायद इसलिए कि अपने घर में दीवाली के दीप तो जला सकें। और फिर लेबल को हटाकर लेबल चस्पा करने वाले(इक्का-दुक्का को छोड़कर) तो शायद जानते भी नहीं होंगे कि वो क्या कर रहे हैं। इन सबका जिम्मेदार तो वो है जो मालिक है इस धंधे का।'


दोस्त यहीं चुप हो गया। लेकिन न जाने क्यों मेरे मन में सवालों के साथ ढेर सारा गुस्सा भी उमड़ पड़ा। और मन ने जो गुस्से से खुद के ही सवाल को जवाब दिया वो क्या था...
'सवा अरब की आबादी वाले देश में आखिर जब लक्ष्मी पूजन का त्योहार आए तो घर में दीप जलाकर हर कोई अपना घर रौशन करता है...। दीवाली पर लक्ष्मी के दर्शन नहीं करेंगे तो कब करेंगे भई....इतना बड़ा मौक़ा है। करोड़ों लोगों की दीवाली में श्रद्धा है।...कपड़े हों, मिष्ठान हो या फिर घर का साजो-सामान। इस मौक़े पर हर घर में खरीदारी होती है....तो फिर कैसे चूक जाएं ये मौक़ा? छोटा हो या बड़ा कारोबारी, सीधे रास्ते पर चलने वाला हो या फिर बुरे रास्ते पर चलकर कमाई करने वाला...ये मौक़ा कैसे चूक जाए ? भई उन्हें तो मतलब है सारा साल दीवाली मनाने से...दीवाली का दिन कैसे चूक जाए? कहते हैं ना हमारे बुजुर्ग....दीवाली पर लक्ष्मी पूजन से साल भर घर में बरकत होती है। दीवाली पर लक्ष्मी न होगी कैसे काम चलेगा?...तो फिर दीवाली पर नहीं कमाएंगे तो कब कमाएंगे?'



दिवाली पर घर में मिठाई नहीं, नए कपड़े नहीं, घर का साजो-सामान नहीं तो फिर कैसी दीवाली? ऐसा ही सोचते हैं आप और हम...लेकिन वो लोग नहीं जो कमाई करना चाहते हैं। वो तो सिर्फ ये सोचते हैं कि कमाई का ये मौक़ा हाथ से निकला तो मुश्किल हो जाएगी...फिर क्या फ़र्क पड़ता है लक्ष्मी चाहे ग़लत धंधे करके आए या फिर सही रास्ते से ...वो दीवाली पर नहीं कमाएंगे तो कब कमाएंगे?

2 टिप्‍पणियां:

  1. आज के भाग दौड़ और महंगाई वाले दौर में अब आदमी त्योहार पर एंजाय ना करे तो कब करे..
    बढ़िया प्रसंग..बधाई!!!

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  2. नौकरी पेशा लोगों की बात कुछ और है .. पर कृषि और व्‍यवसाय में मौके का फायदा उठाना ही पडता है .. हर त्‍यौहार अलग अलग व्‍यवसायियों के लिए मौका लेकर आता है .. यदि साल में ही एक बार बडी कमाई हो जाए .. तो सालभर के मंदे रहे धंधे का भी समायोजन हो जाता है .. हमारे पूर्वजों ने यही सोंचकर तो इतने त्‍यौहार मनाने का रिवाज रखा था !!

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