रविवार, 6 सितंबर 2009

फिर देख तमाशा...

बेशक कहूं कि शिकायत नहीं
लेकिन कहीं न कहीं एक दर्द है
बयां नहीं कर पाता तो क्या
दर्द बन चला इक मर्ज़ है

सोचा बहुत, विचार किया पर क्या करूं
मर्ज़ से बड़ी लगी इस दिल की लगी
जिसने मर्ज़ को पल भर का दर्द बना डाला
बार-बार जीतती गई ये दिल की लगी

खुदा से किए सवाल, बोला मुझसे नहीं
उससे कर सवाल जिसने दिया ये मर्ज़ है
मैंने तुझे विवेक दिया..पर तू तो
उलझता ही चला गया दिल की लगी में

क्यों मेरे सिखाए हुए को तू यूं ही भुला रहा है
क्यों विवेक पर हावी होने दे रहा है दिल की लगी
क्यों एक जगह पहुंचता नहीं तेरा दिल और दिमाग
ऐसे तो तू तो कोसेगा सिर्फ ज़िंदगी को..क्यों?

अरे मूरख सोचता क्या है...
माना कि मैंने ही बनाई है ये दुनिया
पर बात बताता हूं तुझे एक पते की
ऐसी दुनिया बनाकर मैं भी पछता रहा हूं।

शान से जीना है तो ले ले इक मंत्र...
पागल को नहीं, समझदार को कह पागल
और फिर देख तमाशा...
अंधे पर तरस न खा..
छोड़ दे उसके हाल पर फिर देख तमाशा...
किसी का इंतज़ार न कर
दौड़ पड़ सिर पर पैर रखकर
फिर देख तमाशा...
आंसुओं को अपनी ताकत बना
फिर देख तमाशा...
दिल को रख अपने बाजू में
और, फिर देख तमाशा...
चोट खा पर मरहम न लगा
और, फिर देख तमाशा...

तेरा अन्तर्मन ही है तेरा दुश्मन
क्यों नहीं समझता ये बात तू
तिरस्कार कर उस पापी मन का
फिर देख तमाशा...
फेंक दे उस तत्व को कठोर बन
..एक बार जो हो गया वो फिर न होगा

विवेक और कठोरता का साथ ले
और फिर देख तमाशा...
नहीं करेगा तू शिकायत कभी
न होगा कोई शिकवा तुझे।

रविवार, 30 अगस्त 2009

आखिर क्या चाहता है आज का कंज्यूमर?

आपका पसंदीदा सेलिब्रिटी किसी ब्रैंड का एंडोर्समेंट करता दिखाई पड़ता है तो क्या वो प्रोडक्ट आपको भी पसंद आने लगता है?...या सिर्फ आप उस कमर्शियल में अपने पसंद के सेलिब्रिटी को देखने के लिए ही उस कमर्शियल का इंतज़ार करते हैं। यहां पर मन कर रहा है तीन टीवी कमर्शियल्स का ज़िक्र करने का...एक वो जिसमें बड़े ही सहज तरीके से आपको ये दिखाया जाता है कि अगर आपकी नींद पूरी नहीं होती आप अनजाने में वो काम कर जाते हैं...जो शायद आपको करना ही नहीं चाहिए...इसलिए आपको ज़रूरत है ऐसे मैट्रेस की जिसपर लेटते ही आपको नींद आ जाएगी। झट से ेस्ट्राइक कर गया होगा कौन सा कमर्शियल....सही समझे स्लीपवेल मैट्रेस।
दूसरा वो जिस कमर्शियल को समझने के लिए आप सैकड़ों बार विज्ञापन देख जाते हैं जैसे बोलैरो का नया ऐड...सोचा है कि उसमें एक मॉडल अपने गले का हार क्यों छुपाती है?...शायद नहीं। ऐसा नहीं है कि उसे बोलैरो-होल्डर से चोरी का डर है...बल्कि वो बोलैरो चलाने वाले से इतनी प्रभावित होती है कि अपना मंगलसूत्र छुपाती नज़र आती है...क्योंकि वो ये नहीं जताना चाहती कि वो शादी-शुदा है।

और तीसरा वो कमर्शियल जिसमें आपका फेवरिट सेलिब्रिटी आता है..प्रोडक्ट को एंडोर्स कर चला जाता है...आपको शायद ये तो याद रहता है कि सेलिब्रिटी ने काले या लाल रंग के कपड़े पहने थे...लेकिन आप सेलिब्रिटी में गुम रहते हैं...ये याद नहीं रहता कि आखिर वो किस ब्रैंड को एंडोर्स कर रहा है। ....ऊं...(देखिए मुझे भी याद नहीं आ रहा) हां आपको ये याद होगा कि कैटरीना किसी सॉफ्ट ड्रिंक के ऐड में दिखाई देती हैं बड़े ही सेक्सी अंदाज़ में...लेकिन कौन-सा ब्रैंड?...याद भी तो शायद आप कहें शायद स्प्राइट के ऐड में। इसी तरह सुष्मिता सेन, ऐश्वर्या राय, काजोल, करीना कपूर और कैटरीना कैफ आपको किसी न किसी जूलरी ब्रैंड को एंडोर्स करते हुए ज़रूर नज़र आई होंगी। लेकिन...क्या आपको याद है कि कौन सेलिब्रिटी किस ब्रैंड को एंडोर्स करता है? कंफ्यूज़्ड ना...। आप कहेंगे तनिष्क को ऐश्वर्या..नहीं नहीं शायद काजोल एंडोर्स करती हैं। फिर शायद कुछ और कह बैठें। अब नक्षत्र ब्रैंड की बात करें तो फिर आपके मुंह पर ऐश्वर्या का नाम आ सकता है...फिर आप कह सकते हैं सुष्मिता सेन...कैटरीना का नाम लेने में शायद बहुत देर हो जाए और हो सकता है कि शायद तभ भी नाम के साथ शायद जुड़ा हो।

ये चर्चा मैं यूं ही नहीं कर रही। इसके पीछे खासी गहरी सोच है....आखिर आज का कंज़्यूमर क्या चाहता है?, क्या है उसके ब्रैंड चुनने का फॉर्मूला?, किस हद तक इलेक्टॉनिक ऐड्स और प्रिंट ऐड्स उसके शॉपिंग डिसीज़न पर फ़र्क डालते हैं?,किस वर्ग को, किस एज-ग्रुप के लिए सटीक बैठते हैं ये विज्ञापन? इन सवालों के जवाब अगर कमर्शियल्स तैयार करने वाले पहले से ही अपने दिमाग में लाएं तो शायद करोड़ों की फिज़ूलखर्ची बच जाएगी। और तो और...वित्रापनों के माध्यम से एक ब्रैंड जब दूसरे ब्रैंड की नकल करता है तो मामला और बिगड़ जाता है...वहां सिर्फ कॉम्पिटीशन दिखाई देता है...प्रोडक्ट कंज्यूमर को लुभा पाएगा या नहीं...इसकी चिंता बेहद दूर चली जाती है...सिर्फ होता अपव्यय।

तो चलिए मुद्दे पर आते हैं। नया प्रोडक्ट आया...या प्रोडक्ट इन्नोवेशन हुआ...उसके एंडोर्समेंट के लिए बड़े-बड़े सेलिब्रिटी आते हैं...लेकिन क्या वो उस प्रोडक्ट का निजी जीवन में प्रयोग करते हैं...? ऐसा बिरला ही होता होगा। कमर्शियल के बदले मोटा अमाउंट...और क्या चाहिए। आप खुद ही सोचिए....बरसो से आप अपने बालों के लिए सनसिल्क शैंपू इस्तेमाल करते हैं...अचानक सनसिल्क का एड करने वाला सेलिब्रिटी अगर उसे एंडोर्स न करे तो आप भी स्विच करेंगे?...नहीं क्योंकि आपको सनसिल्क की आदत पड़ चुकी है...आपको उसमें विश्वास है। लेकिन ये बातें ब्रैंड्स क्यों नहीं समझते...
ब्रैंड बेचना है तो सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट से कहीं ज़्यादा काम आता है प्राइस प्वाइंट, कहीं ज़्यादा फायदा मिलता है सालों तक एक-सा बने रहने की सीरत; मसलन, निरमा का ऐड...वही धुन, एयरटेल की वही धुन...यानी वो खासियत जो हमेशा से रही है और हमेशा बरकरार रहेगी...उसे उजागर करने पर। वरना कई ब्रैंड्स आए और आकर चले गए। जो अपनी पहचान बना गया...उसे विज्ञापन की ज़रूरत नहीं...जो नहीं बना पाया वो रोज़ नए बदलाव कर भी अपनी पहचान नहीं बना पाएगा। कितना भी बढ़िया क्रिएटिव क्यों न हो अगर कंज़्यूमर के दिमाग में घर नहीं करता तो बड़े से बड़ा सेलिब्रिटी आ जाए ब्रैंड के पूछने वाले नहीं मिलेंगे...क्योंकि कंज्यूमर के दिमाग को पढ़ना इतना आसान नहीं। कंज्यूमर को नित नए बदलाव की आदत नहीं...वो अपनी सेहत और सूरत के साथ खिलवाड़ नहीं चाहता...वो आदतों में जीना बेहतर समझता है और शायद सेलिब्रिटीज़ को बतौर सेलिब्रिटीज़ ही ट्रीट करना चाहता है...यानी वो उसके लिए पर्दे का आइटम हैं...उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा नहीं...जो उनकी आदतों में बदलाव करने का माद्दा रखते हों।

साधारण क्रिएटिव, मेरे-आपसा कोई किरदार और माकूल दाम...यही चाहता है कंज्यूमर...वक्त की मांग से बढ़कर आज भी अपनी मांग को प्राथमिकता देता है आज का कंज्यूमर...क्योंकि वक्त उसका है।